Thursday, March 14, 2013

तलाश




********************तलाश**********************

जाने किस मंज़िल  की है उन्हें  तलाश
नहीं मिल रहे इस कहानी के अल्फ़ाज़
भोर की भावना बता रहा स्याह रात की मिज़ाज
सहर की किरणों ने भी पूछा उदासी का राज़
कभी मिलो दूर तो कभी आस ही पास
जाने किस ......................................

अंदाज़ा न था मौजूदगी का एहसास भर  इतना करीब लता है
घुमड़ते बदल देख जैसे मोर ख्वाब सजाता है
गोधुली बेला  में संझा का फूल  खिल जाता है
दिले सल्तनत तो हाज़िर हम भी कर दे
मुश्किल तो ये है कैसे उजागर हो ये जज़्बात
जाने किस ............................................

अंजाम से बेफिक्र क्या यूं  ही आगे बढ़ा  जाएगा
निगाहें दूंढ  लेंगी फिर भी नज़र कोई चुराएगा
दिल की धड़कन हंसी लम्हों का इंतजार कराएगा
जागती आँखों से सपने देखने वालो को ख्वाब और हकीक़त का फर्क कहाँ समझ आएगा
इन्ही तम्मनाओं और हसरतो के सवालो में उलझ कर मन भी हो जाता कभी उदास
खामोश रात को हो जैसे सुबह की आस
जाने किस….......................................

जिनकी आहट से गलियों की रौनक बढ़ जाती है
फिज़ा  के रंग गहरे चमन के फूल मुस्कुराते हैं
कोयल की कूक सुरीली बुलबुल भी मीठे बोल गुनगुनाती है
उस तस्वीर की तस्दीक क्या करू बस इतना कहूं
रहबरों ने कुछ यूं पढ़े कशीदे उनकी शान में
जाने कब बस गए वो अरमान में
वो मूरत सी सूरत है ही इतनी खास
वर्ना हम भी यूं न होते बदहवास
जाने किस मंज़िल की है उन्हें तलाश।








Sunday, June 24, 2012

               







     राजू की कहानी

इन तस्वीरों को देख कर आप समझ गए होंगे की हमारे देश में बचपन को बचाने  और देश के भविष्य को बेहतर बनाने के दावों की हकीकत क्या है .ये तस्वीर कोई नई  नहीं है की हमे घोर आश्चर्य में डाल दे,लेकिन इन तस्वीरों के माध्यम से इस घम्भीर मसले पर चिंतन और मंथन की ज़रुरत है . हैदराबाद से मुजफ्फरपुर के सफ़र के दौरान बरौनी जंक्शन पर एक बच्चे से बचपन छिनता   दिखा तो इसे कमरे में क़ैद कर लिया .अपनी जिंदगी की बोझ को लाठी के सहारे टिकाने  की कोशिश कर रहा ये है राजू. इसकी चेहरे की मासूमियत को देखकर ऐसा लगता है ,जैसे इसने अपने आप को समझा लिया हो की जिंदगी की रेस में अपनी गाड़ी को ऐसे ही  घसीटनी है ।राजू ट्रनो में कचरा साफ़ करता है ,जी हाँ रेलवे की बदिन्ताज़मी में अपने लिए अवसर तलाश कर ये अपना गुज़ारा करता है।जब एसी बोगी में हम गर्मी से दूर सुखद एहसास की अनुभूति कर रहे थे तब ये आस पास के कचरे को साफ़ कर रहा था, हाँ ये और बात है कि  राजू के माथे की पसीने को ए सी की ठंडी हवा भी नहीं सुखा पा रही थी,हो भी क्यों न गरीबी और लाचारी की तपिश जो ज्यादा थी। साफ़ सफाई के बाद राजू ऐसे हाथ फैलता हो जैसे मौन मजदूर की भूमिका में हो, कोई दे तब भी ठीक न दे तब भी ठीक. जिस उम्र में लोग चहकते  और खिलखिलाते रहते है उसी उम्र में जिम्मेदारियों के एहसास ने राजू की खिलखिलाहट को उससे दूर कर दिया। बरौनी जंक्शन से हर रोज़ कितनी गाड़िया गुजरती है हजारों  लोग आते जाते हैं लेकिन राजू की जिंदगी इसी जंक्शन के इर्द गिर्द घुमती है इसकी जिंदगी में कोई रफ़्तार नहीं आता।राजू की कहानी तो एक बानगी भर है न जाने हमारे देश में कितने बच्चों से उनका बचपन ऐसे ही जुदा हो रहा होगा. हालाँकि तमाम राष्ट्रीय और अन्तराष्ट्रीय  संस्थाए बच्चों को लेकर गंभीरता दिखाती है और योजनाये भी बनती है लेकिन उसकी पहुँच इन तक नहीं हो पाती  है, क्यों- ये सवाल हमे अपने आप से करना चाहिए, क्योकि हमारे बीच के लोग ही इनके प्रति गैरजिम्मेदाराना रवैया   अपनाते है जिससे की न चाहते हुए भी इन्हें छोटी सी उम्र में जिम्मेदारियों का एहसास करना पड़ता  है। चलिए हम तो यही उम्मीद करेंगे की ट्रेनों की रफ़्तार को देखते देखते राजू की जिंदगी में भी एक दिन ऐसा आये जब वो भी अपने जीवन को रफ़्तार दे सके और जिंदगी के ट्रैक पर अपनी गाड़ी को सरपट दौड़ा पाए।

नोट -राजू काल्पनिक नाम है.

Monday, April 2, 2012

***तेरे होठो की हंसी***

तेरे होठो की हंसी हमें खूब भाती है
आँखे अथाह गहराइया बताती है
मुखड़ा सुन्दर  सुबह दिखता है
ये बिंदिया ये काजल ये लाली भी गजब ढाती है
तेरे होठो की हंसी ................
बिस्तर  पे लेटा सुनहरी यादों में खो रहा था
सपनो को रंग भर रहा था
चंचल हवा खिड़की से आती है
झकझोर कर किसी का एहसास करवाती है
अनायास ही तुम्हारी याद आती है
तेरे होठों की हंसी ...............
कभी कभी जब गुस्सा तुम्हारी हंसी को मुह चिढ़ाता
दिल बेचैन सा हो जाता है
ये और बात है की हमारी हरकतों से आपकी हंसी वापस आती है
वर्ना हमे कहाँ किसी का दिल बहलाना आता है
तेरे होठों की हंसी .................
किसी आँगन की अठखेलियाँ बरबस आकर्षित करती है
बेईमान मौसम भी बड़ा उकसाता है
इतने में तेरे आने की आहत होती है
ऐसा लगता है जैसे झूम के सावन आता है
तेरे होठों की हंसी हमे खूब भाती है

*******अबूझ पहेली*******

कैसी अबूझ पहेली है ये जिंदगी
कभी किसी के साथ तो कभी अकेली है ये जिंदगी 
आता है गमो का दौर भी जिसे खुशियों से है मिटाना 
अरमानो को है पलकों पे सजाना 
हर कीमत पे हो सफ़र ये सुहाना 
कभी बिछड़ा यार तो कभी सच्ची सहेली है ये जिंदगी 
कैसी अबूझ ..........................
है कठिन रह लेकिन उस पार है जाना 
मुश्किलों के बयार को चीर है अपना कीर्तिमान बनाना 
कभी राह आसन तो कभी कंटीली भी है जिंदगी
कैसी अबूझ..........................
किसी मोड़ पे होता सुखद एहसास तो कभी मिलता काँटों का ताज 
कठिनाइयो के भंवर को पर कर बनना है सरताज 
नाउमीदी का दामन छोड़ उम्मीद की किरणों को बुलाना है पास 
कभी अलसाई दोपहरी तो कभी शाम मस्तानी है ये जिंदगी
कैसी अबूझ ...........................
कभी मिलती सफलताए अपर तो कई बार झेलना पड़ता हार का वार
विपरीत बयार में भी हो हौसला बुलंद जीवन का यही मूल मंत्र 
कभी कर्कश आवाज़ तो कभी तान सुरीली है ये जिंदगी 
भले ही अबूझ पहेली हो लेकिन  बड़ी ही प्यारी है ये जिंदगी 

Monday, February 13, 2012

******************मोहब्बत एहसासों का एतवार है**********************

मोहब्बत एहसासों का एतवार है 
किसी से तुम्हे प्यार है किसी से हमे भी प्यार है 
पर किसे पता कौन खुद्दार है और कौन गद्दार है 
किसी का दिल जले किसी की रूह रोये 
इसकी किसे परवाह है
उन्हें तो बस अपनी अदाओ से प्यार है 
.मोहब्बत एहसासों का........
 वो दौर और था जब इसके माएने कुछ और थे 
वसूलो और भावनाओं की क़द्र होती थी 
परवाह नहीं एक दूजे से दूर या करीब थे 
वो तो प्यार था मगर आज ये एक व्यापर है 
मोहब्बत एहसासों का ...........
दुहाइआ सब देते खुद को आजमाने की 
मिटने और मिटने की 
पर ये हौसले दीखते है सिर्फ अफसानो में 
जाने कितने वक़्त गुजर गए बेजान बहानो में  
फिर भी न जाने क्यों इस एहसास के लिए ही दिल बेकरार है
मोहब्बत एहसासों का ............
वक़्त की तालीम तो मिलती है इन अनजान राहों में 
तब भी आ जाते बेबसी और लाचारी की बाहों में 
डगमगाने का डर तो है पर जीत का विश्वास भी 
आगाज के बुनियाद पर हर बार निर्भर नहीं होता अंजाम यहाँ 
फिर भी इस की चाहत बार बार है 
मोहब्बत एहसासों का एतवार है

Wednesday, February 16, 2011

ek chehra

        ********** एक चेहरा*********

एक चेहरा जो ऑरों को हसना सिखलाता है 
गम के अंधेरो में भी खुशियों की अलख जगाता है 
बाधाओं के बाढ़ को भी हंस कर पर करना जिसे आता है 
एक चेहरा ....................
मुख मंडल पे  कभी कभी आक्रोश की आकृति भी  उभरती है
गुस्से में लाल चेहरे की भाव भंगिमा दिखती है 
बड़ी संजीदगी इसे हंसी में बदलना जिसे आता है 
एक चेहरा ....................
प्रबल इच्छाशक्ति जिसकी अभिलाषा है 
कार्यो में जिसके समर्पण भाव नज़र आता है
उम्मीद की किरणों जिसने बरबस अपनी और खींचा है
जिंदगी का हर क्षण जिसे नई सिख देता है 
एक चेहरा..................
जिंदगी हद मोड़ पर  इम्तहान लेने को खड़ी है
उस इम्तहान के इंतजार में वो खड़ी है 
आखो में थोड़ी सी झिझक पर  मन में अडिग विश्वास झलकता है
मुश्किलों के थपेड़ो से कश्ती को किनारा करना जिसे आता है 
एक चेहरा जो औरो को हँसना सिख्लता है.
 





Monday, February 14, 2011

vailentine banam vasant

विचार चौक मे आज जिस मुद्दे पर अपनी विचार को अभीव्यक्त कर रहा हूँ बड़ा ही पापुलर है , खास कर इन दिनों, ये अलग बात है की कुछ लोग मेरे विचार से सहमत होंगे और कुछ नहीं . वैसे भी ये आम बात है किसी भीं मुद्दे पर सब लोग एकमत नहीं हो सकते.पर क्या करे जनाब विचार चौक है तो विचार तो देने ही होंगे . चलिए अब टू दी पॉइंट बात करते है ,जिस मुद्दे पर विचार चौक में विचारों का पुलिंदा परोस रहा हूँ वो किसी खास दिन के बारे में है , अब लगभग सीन  क्लेअर हो गया होगा ....जी हाँ मे बात कर रहा हूँ vailentaine डे के बारे में .लगभग एक दशक से लोग इस शब्द से ज़यादा फमेलिएर हुए है. जब मे स्कूल मे पढता था उन दिनों कुछ सिनिएर्स इसके बारे में पूछ कर मज़ा लेते थे जैसे "vailentine डे पे किसको प्रपोज कर रहे हो", vailentine डे पे कहाँ जा रहे हो .......जब मतलब पूछता तो हस्ते हुए उत्तर मिलता कुछ दिनों बाद सब समझ जाओगे .फिर क्या था मै इसकी गहराई और मतलब समझने का अथक प्रयास करता पर असफल रहता .खैर वो दिन भी आया जब इसका मतलब समझ में आने लगा और तब से लेकर आज तक हर वर्ष इस खास दिन क्या होने वाला पता पहले से होता है मसलन कई जोड़े की पिटाई हुए,जबरन शादिया हुए तोड़फोड़ हुआ.
       जैसा की इसका नाम ही अंग्रेजी पन का एहसास करता है आम तोर पर विदेशो में इसे मनाया जाता था लेकिन इन दिनों हमारे देश में इसका प्रचालन काफी बढ़ा हुआ है .आजकल कुछ लोग इसे status  सिम्बल  भी मान ने लगे है .
वैसे vailentine  डे मानाने वालो से मेरा कोई विरोध नहीं है ,न ही मै उन ल्कोगो का समर्थन करता हूँ जो इस दिन उत्पात मचाते है और भारतीय संसकिरती को बचने का झूठा दंभ भरते है .लेकिन इतना ज़रूर है की जिस तरीके से इस दिन को मनाया जाता हैं , वो बहूत ही अच्छा  नहीं कहा जा सकता मसलन किसी पार्क या रेस्टुरेंट में खुले तोर पर प्यारकी नुमाइश करना  .ऐसा नहीं है की हमारी संस्कृति में प्यार के इस उमंग और उल्लास की अनुभूति के लिए दिन नहीं है , पूरा का पूरा एक महिना इस मस्ती के नाम किया गया है जिसे वसंत कहते है.वसंत ऋतू जिसका हर पल नयेपन का एहसास करता है ,जिस से रोम रोम पुलकित और रोमांचित होता रहता है , जो की ज्यादा बेहतर है प्यार का एहसास करवाने और पाने के लिए .
   वैसे आप सभी विचार प्रबुद्ध लोग बेहतर समझ सकते हैं की कौन बेहतर विकल्प है "रोज डे" से शुरू होकर vailentine  डे पर ख़त्म होने वाला प्यार की अभिव्यक्ति या वसंत ऋतू का हर वो रोमांचकारी पल जो प्रेम और मस्ती के एहसास से लबरेज़ रहता है.