********************तलाश**********************
जाने किस मंज़िल की है उन्हें तलाश
नहीं मिल रहे इस कहानी के अल्फ़ाज़
भोर की भावना बता रहा स्याह रात की मिज़ाज
सहर की किरणों ने भी पूछा उदासी का राज़
कभी मिलो दूर तो कभी आस ही पास
जाने किस ......................................
अंदाज़ा न था मौजूदगी का एहसास भर इतना करीब लता है
घुमड़ते बदल देख जैसे मोर ख्वाब सजाता है
गोधुली बेला में संझा का फूल खिल जाता है
दिले सल्तनत तो हाज़िर हम भी कर दे
मुश्किल तो ये है कैसे उजागर हो ये जज़्बात
अंजाम से बेफिक्र क्या यूं ही आगे बढ़ा जाएगा
निगाहें दूंढ लेंगी फिर भी नज़र कोई चुराएगा
दिल की धड़कन हंसी लम्हों का इंतजार कराएगा
जागती आँखों से सपने देखने वालो को ख्वाब और हकीक़त का फर्क कहाँ समझ आएगा
इन्ही तम्मनाओं और हसरतो के सवालो में उलझ कर मन भी हो जाता कभी उदास
खामोश रात को हो जैसे सुबह की आस
जाने किस….......................................
जिनकी आहट से गलियों की रौनक बढ़ जाती है
फिज़ा के रंग गहरे चमन के फूल मुस्कुराते हैं
कोयल की कूक सुरीली बुलबुल भी मीठे बोल गुनगुनाती है
उस तस्वीर की तस्दीक क्या करू बस इतना कहूं
रहबरों ने कुछ यूं पढ़े कशीदे उनकी शान में
जाने कब बस गए वो अरमान में
वो मूरत सी सूरत है ही इतनी खास
वर्ना हम भी यूं न होते बदहवास
जाने किस मंज़िल की है उन्हें तलाश।